तो फिर क्यूँ मिला रही है सबसे ये ज़िन्दगी? |
अनचाही राहों में चलना सिखा दिया
मनचाहे रंगों में ढलना सिखा दिया
बहुत बेरंग थी ये चाहते
फिर भी तूने प्यार करना सिखा दिया
ये ज़िन्दगी तूने बहुत कुछ सिखा दिया
—
कभी इस राह पे तो कभी उस राह पे
मन ठहरता नहीं कभी एक राह पे
कभी खुशियों के मेले
तो कभी तन्हा हम अकेले
—
बहुत कुछ है जीने के वास्ते
फिर भी नहीं मिल रहे हैं रास्ते
मंजिल एक है पर रास्ते बहुत हैं
चलते चलते थक सी गई हूँ
—
ये ज़िन्दगी इस बेगाने से शहर में
मिलते हैं लोग बिछड़ने के लिए
हम भी मिले थे किसी से कुछ पल ठहरने के लिए
एक ख़ुशी सी मिली थी
वो भी हमने खो दी उसी के लिए
—
बहुत अंजान सी है ये ज़िन्दगी
इस नये से शहर में कुछ भी नहीं है
फिर भी लगता है बहुत कुछ है जीने के लिए
—
कभी तन्हाइयों में रोने का मन करता है तो कभी हसने का
पर बहुत कुछ नहीं रहा है मेरे हक़ में
—
आखिर किस किस से तू जुदा करेगी ये ज़िन्दगी
एक दिन बिछड़ ही जाना है
तो फिर क्यूँ मिला रही है सबसे ये ज़िन्दगी?
11 टिप्पणियाँ
Heart touching
जवाब देंहटाएंVery heart touching poem,i like it
जवाब देंहटाएंNice poem
जवाब देंहटाएंLovely&heart touching poem
जवाब देंहटाएंRead this poem and immediately you will start missing the most special person of you life. Very sensitive poem. To phir kyu Mila r hai Sabse ye zindagi?
जवाब देंहटाएं��������������
जवाब देंहटाएंSo beautiful lines......
जवाब देंहटाएंVery nice poem
जवाब देंहटाएंIt's true really heart touching poem
जवाब देंहटाएंलाजवाब शायरी हैं
जवाब देंहटाएंthank u for sharing very informative info
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