हौले- हौले बढ़ रहे हैं ख्वाब मेरे
नहीं पता धडकनों को हाल मेरे
धड़कने कर रही हैं गुप्तगू खुद में
क्युकी तुझको लेकर बदल रहे हैं ख्याल मेरे
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उड़ रहें हैं ख्वाब, मन आगोश में है
धड़कने जवां- जवां सी हैं
फिर भी हम खोये से हैं
ऐसा लगता है बहुत कुछ है अपने बस में
पर फिर भी हम ठहरे से हैं
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शायद इसीलिए मेरे ख्वाब अधूरे से हैं
हौले- हौले बह रही है बदहोश धडकनों की हवा
कुछ पल ठहरे थे हम भी ये सोच कर वंहा
की कुछ तो है जो इन मदहोश हवाओं में है
जैसे मोहब्बत की कोई डायरी मेरे हाथो में है
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मन तो करता सब कुछ बयां कर दू अल्फाजों में
पर बहुत कुछ है जो नहीं लिखा जा सकता
एन मासूम कागजों में
तुझे देख कर धड़कने भी शोर करती हैं
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