मै क्या हूँ


मै क्या हूँ !(कविता )

मुश्किलों से थी मै घिरी
 तू मुझे ये जान ले, 
थी दुखों की घडी
 तू मगर ये जान ले 
मै क्या हूँ मै क्यूँ हूँ 
 तू मुझे पहचान ले |

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थी रौशनी तो हर जगह 
पर मुझे खबर नहीं 
अंधेरों से लड़ने भागती 
हुयी मै चली 
मै थक चुकी थी बहुत
 पर कंही रुकी नहीं 
मै क्या हूँ मै क्यूँ हूँ 
तू मुझे पहचान ले |

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हौसला था बुलंद 
नयी उमंग ले चली 
मै मुश्किलों को पीछे छोड़
 भागती हुयी चली 
नई डगर नया सफर
 थी रास्ते में अडचने 
मगर कंही डरी नही
 और कंही रुकी नहीं 
मै क्या हूँ मै क्यू हूँ 
तू मुझे पहचान ले 

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थी आग सी मुझमे भरी
 प्रचंड रूप भी धरी 
मगर किसी सक्स की
 आड़ में थी छुप चली 
प्रचंड रूप की किरण 
मगर किसी पर पड़ी नहीं 
मै क्या हूँ मै क्यूँ हूँ
 तू मुझे ये जान ले| 

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हूँ दयालू भी बहुत 
मै शीतलता से भरी 
ममता की छाँव में
 मै भी हूँ पली बढी
कठोर हूँ मै नर्म भी पर 
दुष्कर्म कभी सही नहीं 
मै क्या हूँ मै क्यूँ हूँ 
तू मुझे ये जान ले |

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कभी जो कोई मुस्किल में पड़ा
 थी दौड़ती हुयी मै चली 
खुद दुखों से घिरी मगर
 दूसरों की रक्षा करी 
मुझसे भी  कोई पूछता
 ऐसा कोई मिला नहीं 
मै क्या हूँ मै क्यूँ हूँ
 तू मुझे पहचान ले |

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थी तारीफे तो हर तरफ
 मगर कभी सुनी नहीं 
क्या फायदा उन तारीफों का
जो खुद से कभी मिली नहीं 
मै क्या हूँ मै क्यूँ हूँ
 तू मुझे पहचान ले |

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घूमी थी दर -दर मगर आवारा नहीं हूँ मै 
हालत की मारी थी मगर बेचारी नहीं हूँ मै 
तू हँसी थी न जिन्दगी !
मुझे घिरता हुआ देख कर ,
देख फिर संभल आई अभी हारी नहीं हूँ मै ...!!