मजहबी धब्बा | Motivational article on religion



लोगों में भेदभाव -आजकल लोग तो मजहब को लेकर इतना परेशान  चुके हैं उन्हें किसी और का कुछ नहीं सुनना लोग एक दुसरे के प्रति भेदभाव को लेकर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं वो ये नहीं सोचते की ये हम सभी के लिए बहुत ही दुखदायी है |
लोग कर भी क्या सकते हैं उनके माता -पिता ने उन्हें इसी सोच के साथ पैदा ही किया की बेटा तू हिन्दू है, तू मुसलमान है ,तू सिख ,तू इसाई  ये प्रथा आज से नहीं हमारे पूर्वजों के ज़माने से चली आ रही है |


लोग एक दुसरे से लड़ रहे दंगे फसाद कर रहे मजहब के नाम पर न जाने कितनो की मौत हो जाती है इसी भेदभाव के कारण लेकिन लोगों की सोच नहीं बदलती कोई कहेगा मै तो राजपूत परिवार से हूँ इन  नीच जाती वालों से दोस्ती क्यों करूँ ,मै इनसे अपना लंच शेयर क्यों करूँ , या फिर इनके घर क्यों जाऊ कंही इन्ही मम्मी ने हम कुछ खिला दिया अपने घर का तो धर्म भ्रेस्ट न हो जाये घर जाकर माँ को क्या बोलूँगा /या बोलूंगी ये वो इंसान नहीं उनके पूर्वजो की सोच बोल रही है जिसे लोग आज तक मानते आ रहे हैं |


कोई राम मंदिर पर लड़ रहा तो कोई किस लिए ये सारी  लड़ाई सिर्फ हमारी सोच से होती है अगर हम आपस में भाईचारा मजहब और जाती धर्म को छोड़कर एक बार ये सोचे की हम सभी एक इंसान है भले ही हमे जन्म किसी और परिवार में मिला दूसरी जाती में मिला लेकिन हैं |

तो हम सभी एक इन्सान ही हम सभी तो फिर क्यों जाती धर्म मंदिर मस्जिद के नाम  पर लड़ाई लड़ते हैं हम जैसे हम सभी को लोग अलग -अलग नाम से बुलाते हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की हम चार- पांच हम तो एक ही हैं इसी तरह हमारा इश्वर  एक ही है हम उसे अपने पसंद के नाम से बुलाते हैं |

जैसे कोयले को हीरा कहने से कोयला हीरा नहीं हो जाता उसी प्रकार इश्वर का अलग -अलग नाम लेने से इश्वर अलग नहीं हो जायेंगे वो एक ही रहेंगे |
फिर हम क्यों आपस में लड़ भिर रहे हैं हम क्यूँ एक दूसरे  को नहीं सुनना चाहते क्यों बताते हैं की तुम अलग हो हम इस जाति या धर्म के हैं|


 हम क्यों हम सभी को बाट रहे |अलग- अलग हम सभी इंसान हैं किसी के यंहा भोजन कर लेने से किसी का कुछ नहीं बदलता हम सभी के चहरे अलग हैं नाम अलग हैं सोच अलग हैं कोई गरीब है तो कोई अमीर है |


लेकिन हम सभी एक इन्सान हैं हम सभी एक दुसरे से प्यार कर सकते हैं एक दुसरे के यंहा भोजन कर सकते हैं इससे हम बदल नहीं जायेंगे बल्कि जो हमे इतने  प्यार से बुला रहा है उसके कहने पर अगर नहीं गए तो उसे जरुर बुरा लग सकता हैं और बस यही से जाति भेदभाव शुरू हो जाते हैं |
कल वो कुछ और करेंगे  इसी से झगडे बढ़ते  हैं |

इस जाति -धर्म भेदभाव के कारण कितने प्रेमी मर गये कितने लोग मझेब के नाम पर मारे गये हम सब इसकी चर्चा को लेकर घंटों न्यूज़ देखते हैं और समय बर्बाद करते हैं अगर हम सभी सोच में परिवर्तन  लाये तो क्या कुछ नहीं हो सकता है लोग सरकार को लोग दोषी मानते हैं की उनकी वजह से ये सब हुआ अगर हम अपनी सोच सही कर लें |


तो सरकार हमारा कुछ नहीं कर सकती है हमलोगों में आपस में तो बन नहीं पाती उसकी वजह हम सरकार को बताते हैं| क्यों क्युकी यही हमारी सोच हैं और भविष्य भी हम सभी अलग नहीं हैं हम सभी हिन्दुश्तानी हैं जब तक हम खुद नहीं सुधरेंगे |


तब तक आपस में चाहे जितना मन आये झगड़ तो दंगे कर लो कुछ हाशिल नही होने वाला चाहे कोई भी सरकार बना लो सरकार को चुना किसने अब एक लोग के वोट देने से सरकार तो बन नहीं जाएगी जहाँ  बहुमति होगी |

वही सरकार बनेगी |आप अपनी सोच को नहीं बदलते आपकी आपस में नहीं बनती तो उसमे सरकार क्या कर लेगी सरकार अब घर -घर जाकर ये तो नहीं कहेगी की आप क्यूँ झगड़ रहे या आपकी आपस में क्यूँ नहीं बनती 
हम सुधरेंगे तभी देश सुधरेगा यूँ रोज -रोज एक दुसरे से बहेश करना या मिडिया के सामने अपना मजाक बनवाना आप -सभी को अच्छा लगता है 
क्या ?? अगर कुछ रोकना ही है तो दुष्कर्म रोको लोगो की मदद करो बिना देखे की ये हिन्दू है या मुस्लिम  हम सभी में इंशानियत है|


 लेकिन दिखाना कोई नहीं चाहता सोचता मै अपना समय क्यूँ बर्बाद करूँ ,लेकिन अभी इसी जगह कोई मजहबी जंग छिड़ जाये तो लोग अपना कितना समय बर्बाद कर देते हैं बहेश करने मार झगडा करने में मै कहती हूँ भाइयों और बहनों दिवाली आ रही हैं हम सभी इस बुराई को हटाकर एक नई शुरुवात करते हैं जब हम अपने आप को बदलेंगे अपने परिवार को बदलेंगे तभी हमारा देश भी बदलेगा मेरा मतलब अच्छा बनेगा |


क्यूँकी समाज की सबसे छोटी इकाई होती है परिवार इसिलए हमें सबसे पहले खुद से फिर अपने परिवार से शुरुवात करनी है उनकी सोच को बदलना है  हम सभी आपस में भाई -बहेन हैं  हमारे बीच अगर कुछ होनी चाहिए तो इंशानियत होनी चाहिए  ये जाति-धर्म का भेदभाव नहीं 
हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ! 
क्यूंकि-
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना 
हिन्दू हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा |

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