फिर लौट आई हूँ मै (कविता ) |
थोडा डूबी थी, मगर फिर
तैर आई हूँ मै ....
ये जिंदगी! देख तू
फिर जीत आई हूँ मै...
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जमाने से डर कर भाग जाऊ
वो खिलाडी नहीं हूँ मै
वक़्त से कह दो
फिर लौट आई हूँ मै...
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कह दो इन मुसाफिरों से
की बेमतलब की
बातों को छोड़ दे
क्यूकी फिर एक
नई कहानी लायी हूँ मै....
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कमजोर नहीं हूँ
मजबूर भी नहीं हूँ
जिस माँ ने जना हमे
और जिस धरती पर जन्म लिया
उस मार्तभूमि की बेटी हूँ मै ...
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सुन लो दुनियां वालों
तुम्हारी फरेबी बातों को न समझूँ
इतनी छोटी नहीं हूँ मै ...
तलब की मछली नहीं
आकाश की चिड़िया हूँ मै ...
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मैदान छोड़ जो भाग जाये
वो खिलाडी नहीं हूँ मै
हार निश्चित थी फिर भी
अंत तक खेली हूँ मै ....
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दुखो से कह दो अपना
रुख मोड़ ले
क्युकी अपने साथ एक
नई उमंग लायी हूँ मै...
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नफरत की तो जलोगे
क्यूंकि एक ज्वालामुखी
की ज्वाला हूँ मै ....
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प्यार से रखना है
तो रख लो मुझे
क्यूंकि शीतलता की छाया हूँ मै ...
जो जिंदगी भर दुखों से लड़ी
और फिर निखर कर है खड़ी हुयी
मुझे फक्र है की उस माँ की बेटी हूँ मै
ये जिंदगी !देख फिर लौट आई हूँ मै ...