तनहाइयाँ


तनहाइयाँ (कविता )

दिल की समुन्दर की सतह पर आकर सुन ,
खामोशियाँ किस कदर शोर मचाती हैं ,
दर्द को बहुत मनाया की आँखों से न छलके 
 दुनिया बेकार में झूठी बाते बनाती है |

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कभी मेरे दिल के दहलीज पर कदम तो रख ,
मेरे प्यार की लहरे देखो कैसा तूफ़ान मचाती हैं ,
मैंने लोगों को बहुत समझाया की यूँ शोर न मचाया करें 
लेकिन दुनिया ताने मार- मार के जलाती है |


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मेरी आँखों में आँखे डाल के तो देख ,
ये नज़रे तेरे इस्क में शर्म से कैसे झुक जाती हैं , 
मैंने बहुत बार तुझे नजरंदाज करने की 
कोशिस की लेकिन इन आँखों में
 बार बार तेरी तस्वीर नज़र आती है |

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मेरी खुसबू को महसूस तो कर ,
देख कैसे रुह तड़प जाती हैं ,
मुझे अकेलेपन से बहुत डर लगता है 
फिर भी ये तनहाइयाँ शोर मचा ही जाती हैं |

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कभी आ बैठ पास मेरे ,
देख दिल की धड़कने कैसे शोर मचाती हैं ,
कहने को तो बहुत लोग हैं साथ मेरे 
पर अकेले में ये गीत तेरे ही गुनगुनाती हैं |

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बहुत शिकायतें हैं न तुझे मुझसे ,
आ देख कैसे ये आँखे आशुंयों छिपाती हैं , 
कहने को तो बहुत लोग हैं पास तेरे 
पर ये दुनिया हमेशा साथ कंहा दे पाती है |